समझाइश, सोनिया गांधी की गुप्त योजना और अप्रत्याशित फैसला... वो दिन जब डॉ. मनमोहन सिंह के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय का रास्ता खोला गया था।
जीएन न्यूज़, संवाददाता
साल 2004 में, जब कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) ने चुनाव में जीत हासिल की, तो सभी मान रहे थे कि सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी। कांग्रेस पार्टी जोर दे रही थी कि सोनिया गांधी पीएम पद स्वीकार करें, जबकि विपक्ष उनके विदेशी मूल को लेकर विरोध जता रहा था। इस राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, पूर्व वित्त मंत्री और अनुभवी अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा हुई। यह फैसला और इसके पीछे की कहानी बेहद रोचक है।
2004 के लोकसभा चुनाव के नतीजे 13 मई को घोषित हुए। यूपीए ने एनडीए को हराकर जीत दर्ज की थी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल था कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा? पार्टी में अगले कुछ दिन इस चर्चा में बीते कि सोनिया गांधी जल्द से जल्द प्रधानमंत्री पद स्वीकार कर लें। लेकिन फिर आया 18 मई 2004 का वह दिन, जो इतिहास में दर्ज हो गया। पार्टी के करीब 200 सांसद संसद भवन के कक्ष में इंतजार कर रहे थे कि सोनिया गांधी आकर अपना फैसला सुनाएं।
इस दौरान, सोनिया गांधी अपने बच्चों, राहुल और प्रियंका, के साथ वहां पहुंचीं। उनके चेहरे पर गंभीरता थी, जिसे देखकर कुछ लोगों ने अंदाजा लगाया कि कोई बड़ा फैसला होने वाला है। सोनिया गांधी ने अपने पुराने सहयोगियों का अभिवादन किया और माइक्रोफोन तक पहुंचीं। पूरे कक्ष में सन्नाटा था। उन्होंने घोषणा की, "पिछले छह वर्षों से, जबसे मैंने राजनीति में कदम रखा है, एक बात मेरे लिए हमेशा स्पष्ट रही है, और वह यह कि प्रधानमंत्री पद कभी मेरा लक्ष्य नहीं रहा। मैंने हमेशा यही सोचा था कि यदि कभी मैं ऐसी स्थिति में आई, जिसमें आज मैं हूं, तो मैं अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनूंगी।"
वह थोड़ी देर रुकीं और अपने बच्चों की तरफ देखा, फिर आगे कहा, "आज मेरी अंतरात्मा कहती है कि मैं इस पद को पूरी विनम्रता के साथ अस्वीकार कर दूं।"
इस घोषणा के साथ, उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाया, जो भारतीय राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण और यादगार क्षणों में से एक बन गया।