सिर्फ धूम्रपान नहीं, वायु प्रदूषण, चूल्हे का धुआं और फूड केमिकल भी खतरे की जड़: डॉ. तनुश्री गहलोत।
ग्रेटर नोएडा ( जीएन न्यूज, संवाददाता ) ।
विश्व लंग कैंसर दिवस 2025: बढ़ते मामलों को लेकर विशेषज्ञों की चेतावनी, सिर्फ धूम्रपान नहीं, वायु प्रदूषण, चूल्हे का धुआं और फूड केमिकल भी खतरे की जड़ धूम्रपान न करने वालों में भी बढ़ रहे हैं फेफड़ों के कैंसर के मामले, महिलाओं और मध्यम आयु वर्ग में तेजी से बढ़ रहा है लंग कैंसर विश्व लंग कैंसर दिवस पर विशेषज्ञों ने बताए कारण, लक्षण और बचाव के उपाय
ग्रेटर नोएडा/नोएडा, 1 अगस्त 2025:
विश्व लंग कैंसर दिवस के अवसर पर फोर्टिस हॉस्पिटल्स ने फेफड़े के कैंसर को लेकर बढ़ती चिंताओं और बदलते रुझानों पर प्रकाश डाला है। विशेषज्ञों ने यह स्पष्ट किया है कि यह रोग अब केवल धूम्रपान करने वालों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वायु प्रदूषण, इनडोर स्मोक, पारिवारिक इतिहास और यहां तक कि कुछ देसी औषधियों का सेवन भी इसके पीछे जिम्मेदार हो सकते हैं।
डॉ. तनुश्री गहलोत, एडिशनल डायरेक्टर, रेस्पिरेटरी मेडिसिन, फोर्टिस ग्रेटर नोएडा* के अनुसार, “हम हर महीने लगभग 15–20 नए फेफड़े के कैंसर के मामले देख रहे हैं, और हाल के वर्षों में इनमें तीव्र वृद्धि हुई है। पहले जहां बुज़ुर्गों में यह बीमारी अधिक देखने को मिलती थी, अब मिडल एज यानी 40 से 60 वर्ष की आयु वर्ग में भी इसके मामले तेजी से सामने आ रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि लगभग 20% मामले ऐसे हैं जो कभी धूम्रपान नहीं करते।”
उन्होंने बताया कि धूम्रपान न करने वालों में भी कैंसर के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं, खासकर महिलाएं अधिक प्रभावित हैं और एडेनोकार्सिनोमा इसका प्रमुख प्रकार बनकर उभरा है। प्रमुख कारणों में इनडोर चूल्हा धुआं, पैसिव स्मोकिंग, वायु प्रदूषण, और प्लास्टिक और फूड प्रिज़र्वेटिव्स का अधिक इस्तेमाल शामिल हैं।
डॉ. ज्योति आनंद, सीनियर कंसल्टेंट – मेडिकल ऑन्कोलॉजी, फोर्टिस नोएडा* ने चेतावनी दी कि फेफड़ों का कैंसर अब शहरी जीवनशैली और पर्यावरणीय कारणों का खतरनाक परिणाम बनता जा रहा है। “धूम्रपान फेफड़ों के 70–80% कैंसर मामलों के लिए ज़िम्मेदार होता है, लेकिन अब गैर-धूम्रपान करने वालों (नॉन-स्मोकर्स) में भी फेफड़ों के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। नॉन-स्मोकर्स में यह बीमारी आमतौर पर कम उम्र में सामने आती है, जबकि धूम्रपान करने वालों में यह बाद में पता चलती है। साथ ही, महिलाओं में यह अधिक देखने को मिल रही है। वायु प्रदूषण फेफड़ों के कैंसर के लिए लगातार एक गंभीर खतरा बना हुआ है। यह फेफड़ों में सूजन पैदा करता है, जिससे कैंसर विकसित हो सकता है। वायु प्रदूषण कुछ विशेष आनुवंशिक बदलावों (म्यूटेशन) को भी ट्रिगर करता है, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।”
डॉ. तनुश्री आगे कहती हैं कि हाल के वर्षों में बीमारी बहुत तेजी से बढ़ रही है, खासकर मिडल एज में, और अक्सर देर से अस्पताल पहुंचने के कारण जांच के समय रोग अंतिम चरण में होता है, जिससे इलाज के विकल्प सीमित हो जाते हैं। यदि समय रहते पहचान हो जाए, तो कुछ प्रकार के फेफड़े के कैंसर पूरी तरह ठीक भी किए जा सकते हैं। फेफड़े के कैंसर के प्रमुख लक्षणों में लगातार खांसी, सांस लेने में तकलीफ, सीने में लगातार दर्द, थूक में खून आना और अचानक वजन कम होना शामिल हैं। इन लक्षणों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
डॉ. ज्योति ने आगे कहा, “नॉन-स्मोकर्स में फेफड़ों के कैंसर के मामलों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। इसलिए, लोगों में जागरूकता बढ़ाना और बीमारी की जल्दी पहचान को बढ़ावा देना समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है। समय पर जांच और जीवनशैली में बदलाव ही इस बीमारी से बचाव के सबसे प्रभावी तरीके हैं।”
डॉ. ज्योति ने आगे बताया, “अगर फेफड़ों का कैंसर शुरुआती चरण में पकड़ में आ जाए, तो यह पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, 80–90% मामलों में मरीज तब आते हैं जब कैंसर अत्यंत अखिरी (एडवांस) या लाइलाज स्टेज में पहुँच चुका होता है। यदि शुरुआत में ही इसका पता चल जाए, तो सर्जरी या एसबीआरटी (SBRT) से इलाज संभव होता है। लेकिन यदि एडवांस स्टेज में बीमारी पकड़ी जाए, तो इलाज का मुख्य तरीका सिस्टमिक थेरेपी होता है, जिसमें कीमोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी शामिल हैं।”
विश्व लंग कैंसर दिवस के मौके पर फोर्टिस अस्पताल्स की ओर से यह संदेश दिया गया है कि लोग धूम्रपान और गुटखे का सेवन पूरी तरह छोड़ें, और घरों में चूल्हे के धुएं से बचाव के उपाय अपनाएं। वायु प्रदूषण के खिलाफ व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर जागरूकता ज़रूरी है। भोजन में प्लास्टिक और केमिकलयुक्त उत्पादों के इस्तेमाल से परहेज़ करें। किसी भी लक्षण को नज़रअंदाज़ न करें और समय पर डॉक्टर से सलाह लें। साथ ही, नियमित स्वास्थ्य जांच को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाएं।